बुधवार, 31 अगस्त 2016

चला गया

उम्र अभी वो नहीं कि सब हमे बाबा कहें
तुम यूँ अलग हुए कि नूर ही चला गया

अब किस किस को सुनाएँ अपनी व्यथा
वो जो भीतर था बाहर क्यों चला गया

अपने हक़ का लगता है ज्यादा मसला
दबाव कुछ ज्यादा था वो कुचल गया

हमने तो सोचा था पूरा हक़ है उनपर
रबर को इतना खींचा, टूटता चला गया  

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

कुछ अलग

हर सितम सर झुकाया रिश्ते की नाजुकता जानकर
मौन हम, नीची औकात कहा उसने भौं तानकर

मेरे अंगना तूफ़ान आया और सब उजड़ गया
बचा वही जो उस पल झुका और संवर गया

कौन कौन कितने थे वो यह तो हमको याद नहीं
आज खो कर पाया हमने कोई उनके बाद नहीं

हमने बिस्तर बाँध लिया, कब सफ़र शुरू हो पता नहीं,

दुनिया ढूढेगी हमें यहाँ वहाँ, पर हम मिलेंगे अब वहीँ


शनिवार, 20 अगस्त 2016

पैदा होते भू पर सारे, घडी आई मर जाते हैं
कोई नही जाने कारण, क्या करने वो आते हैं 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

जीवन मंजिल जोहता है

जब तारे न थमते नभ में न लौ सूरज की फीकी हो
तू थक कर क्यों बैठ गया ज्यूँ मंजिल तेरी रीती हो

यहाँ पथ पर चलने वाला, हर कोई मुसाफिर होता है
तू निराला मत बन यहाँ, ये जीवन मंजिल जोहता है

मंजिल सबकी अलग अलग, साथी की तू बाट न जोह
वो जायेगा अपने पथ तू लेता फिरता उसकी क्यूँ तोह

पवन चले तू चलता चल जल बरसे तू सोच ना पल
दिन ढले या साया छले, तू मंजिल को बढ़ता चल

यहाँ दिखा तू थका थका, सब मुख मोड चले जायेंगे
सब होंगे पर थके को एकांकी का अहसास करायेंगे

उस पल को आने न दे जिस पल न कोई प्रीती हो
चल अब थक कर तू बैठ न, ज्यूँ मंजिल तेरी रीती हो

बुधवार, 3 अगस्त 2016

एक परछाई सी रह गई



दोनों चैन से बेठे आँख खोल सोये थे
अधजगे अजीब से सपनो में खोये थे
जाते हुए अम्मा ने पूछा
खाने का डब्बा रख लिया, पानी तो नही रह गया
सारी पुस्तके रख ली कोई काम तो नहीं रह गया
बापू कमा पीठ झुका पूछे
बेटा तेरा सारा सामान आ गया कुछ और तो नही रह गया
थोड़े पैसे और रख ले देख लियो कुछ बाकी तो नही रह गया
बेटे ने फटफटी उठाई सामान बाँधा और बोला
अम्मा मै चला तुम देखना कुछ बाकी तो नही रह गया
अम्मा ने बापू को देखा देखा आँखों में पानी रह गया
दोनों की जिंदगी आशावादी सपनो में खोने लगी
हर रोज सुबह से सांझ
उसके जाने तक की याद संजोने लगी
खबर आई पुत्र, पुत्रवधू लाया
दूल्हा बना देखूं वही सपना सपना रह गया
जाने को एक कोडी ना इच्छाएं बढ़ना छोड़ी ना
देखें मुख वधु का और चाहें जल्द बने माँ
पुत्र का आया पैगाम अम्मा मै आता हूँ
तेरी बहु तुझे पूजना चाहे, तुझे यहाँ ले आता हूँ
अधुरा स्वपन पूरा होने को था
दोनों ने फिर आँख भर पूछा
सब मिल गया बस अब इच्छा में कुछ न रह गया
घर का चिराग आते ही बोला
बांधो बिस्तर चलो साथ अब यहाँ हमारा क्या रह गया
बापू बोला गाँव की मिट्टी पुरखो की घाटी
खेत खलियान घर का दालान
सब कैसे छोड़ दें अब यही तो बाकी रह गया
पुत्र बेच सारा सामान जमा कर पूंजी मिटा नामो निशान
दोनों को लाया संग पर दोनों थे हैरान देख बदले रंग
बोला बापू यहाँ बुजुर्ग इस घर में रहते तुमको यहीं रहना है
पत्नी को फुरसत नही अब माँ को करना और सहना है
दोनों के चेहरे का रंग उदा जो सदा चले थे संग संग
क्या इस दिन की इच्छा लिए जिए
अलग अलग होते सोचे थे अब बाकी तो कुछ नही रह गया
तभी घबराहट में छुटा पसीना दोनों आँखे भर बैठे थे
शहनाई गूंजे थी कानो में जान न थी रानो में
बेटी को कर बिदा बेटा होता के सपनो में खो गये थे
अगर ऐसा होता, तो कैसा होता   

बिदा कर पुत्री को ठंडी सांस ले बोले
बस अब कुछ इच्छा नही रह गयी  
जो चिरैया सी चहकी फुदकती डोले थी

सूना कर आँगन एक परछाई सी रह गई