रविवार, 31 मार्च 2013

धोखा खा गये

लो आज हम फिर धोखा खा गये
कमबख्त दिल की बातों में आ गये
हमारी चाहत में उनकी भी चाहत हो
सोचकर इतना सब कुछ बतला गये

तुम हसीन हो जवान हो दिल ने कहा
लगा हमे यूँ खुदा के कुचे में आ गये
दुआ को हाथ  हमने उठाया था अभी
सर्द हवा के संग हम पसीने नहा गये

अंतिम चरण तक तुम पर थी आस
नज़र नही आई पर दिल के थी पास
सांस उखड़ा याद आया तुम थी सांस
हमारी मौत तुम बेवफाई दिखा गये

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

भ्रष्ट ईमान

ईमान अब शैतान हो गया है
भ्रष्ट  हो  महान हो गया है
कुछ ही वर्ष बीते ये कमीना
भेजे से धनवान  हो गया है

शुरु में यह डरता था ऐसे
पकड़ा गया करेगा कैसे  
अब तो पकड़ने वालों का
रस्ता ए धनवान हो गया है

शरीफों की तरह जी रहा था
रस नफरतों का पी रहा था
सृष्टी पर देखो तो लोगों  
बोझ आसमान हो गया है 

बदनाम का नाम हो रहा है
भ्रष्ट हो कर रिश्ते खो रहा है 
बन गया है यह कलंक ऐसा
छुटने का ना नाम ले रहा है 

सोमवार, 25 मार्च 2013

ना खेलूं होली

गोपियों सुनलो मोरी
के अब के न खेरूं होरी

बीते बरसों प्रेम में बीते
उनको देखत रहे जीते
कैसे सोचें खेलन की
बिछुड़ी संगनी मोरी
गोपियों सुनलो मोरी , के अब के न खेरूं होरी

खूब खेरा फाग था हमने
लाल गुलाबी अबीर संग में
खुशबू रह गई तन में
चंदन की खोई पोरी
गोपियों सुनलो मोरी , के अब के न खेरूं होरी

चाहूँ मै भी रंगों रंग जाऊं
गोपियों संग सब सखा बुलाऊं
खूब ही खेरुं होरी
जो ढूंड लो मोरी गोरी
गोपियों सुनलो मोरी , के अब के न खेरूं होरी

कान्हा आवे उसे बत्तियो
मोपे बीती उसे सुन्नियो
सब कहें उसको काम
फिर क्यों डोर तोरी
गोपियों सुनलो मोरी , के अब के न खेरूं होरी

रविवार, 17 मार्च 2013

जल न पाऊंगा

तुमने छोड़ा है हमको यह तो तुम कहते हो
पर याद में अब भी, क्यों आँखें से बहते हो

क्या दो घडी न मिलना छोड़ देना होता हैं
तुम अकेले में फिर क्यों प्रभु से कहते हो

हमसे पूछो हर पल तुम संग में रहते हो
दर्द ए दिल छुपाते हम पर समझे रहते हो

तुम रख कर दिल पर हाथ दूर हो कह दो
पर फिर क्यों तुम ये दिल सम्भाले रहते हो

कोई रिश्ता न हो सका पर प्यार करते हो
प्यार तो है प्यार इसे रिश्ता क्यों कहते हो

वक्त का सताया हूँ वक्त आया तो जाऊंगा
जलने से डरता हूँ तुम इस दिल में रहते हो

सोमवार, 11 मार्च 2013

बिछुड़ गये

पैदा हुआ मै

पता ही नही चला
रिश्ते कब पैदा हो गये

आदी हुआ उनका
जुदा होने शुरू हो गये

अकेला आया
जीने में सब जुड़ गये

पहले या बाद
मै चला सब बिछुड़ गये

शनिवार, 9 मार्च 2013

खाली खाली

रकीब से चाहत है इस हद तक
वो आया उनकी याद दे गया
उसको गले से लगाया हमने
तन मन उनकी महक दे गया

उनकी मंशा विरूध दिल में बसाया
ना चाहते हुए भी सबसे सब कह गया
अब डरतें हैं जहान से कुच करने में
दफनाना, देखना दिल संग ना रह गया 

वीरान थे हम आशियाँ खाली पड़ा था
देखा जो उसे गुलशन ही महक गया
हमारा मकान तो एक मकान ही रहा
भले दूजे के मकान को घर कह गया


 

रविवार, 3 मार्च 2013

स्वयं

अपनी शक्सियत कुछ अजीब है
ख्याल के ही ख्यालों में रहता हूँ
स्वयं लिखता हूँ स्वयं सुनता हूँ
स्वयं ही मुस्का कर दाद देता हूँ
स्वयं के लिए ही जीता जाता हूँ
स्वयं ही स्वयं मरता जाता हूँ
स्वयं को छोड़ कदम बढाता हूँ
स्वयं को स्वयं से अलग पाता हूँ