शनिवार, 31 मार्च 2012

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया (अप्रैल फूल विशेष)

प्रभु मैंने वरदान था माँगा
मुर्ख रहूँ अहसान था माँगा

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया

सुनने को तैयार नही कोई
पर मुझे सबसे सुनवा दिया 
लोग आते अपनी कह जाते हैं
जैसे ही मैं कहता लुप्त हो जाते हैं

बचपन में पढ़ा  करते थे
जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि
सोचा तभी कवि बनेगें हर जगह पहुचेंगे
पर ये न पता था अपनी सुनाने 
ढूंढते सुनने वालों को कन्दराओं तक पहुंचा दिया

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया

जहाँ जाते हैं सब छुप जाते हैं
यदा कदा अनजान कोई हमसे मिलता है
खूब हँसता है हँसाता है
जैसे ही पूछता हमारा परिचय
हम गौरवान्वित हो कहते कवि
उसे या तो सुनना बंद हो जाता है
या बिना उत्तर दिए कोई काम याद आ जाता है
भाई ऐसा हमने क्या बता दिया

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया

हे पूर्वज कवियों जब पता था पीढ़ी का हश्र ये
क्यूँ न सपनों में आकर हमे समझा दिया 
काहे भाई सुरिंदर शैल आदित्य जैसे संप्ल दिखा दिए
पुरे नही पर कुछ गुण हममे ला दिए 
आज आयोजक बुलाने से पहले दरियां सिम्त्वाओगे की condition लगाते हैं 
हमारे पूछने पर वो तम्बू लगाने से पहले तम्बू वाले की शर्त बताते हैं 
आज सुनाया दरी को सुनाया उठाया फिर सोते हुए से लिफाफा दिलवा दिया 

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया     
   



 

गुरुवार, 29 मार्च 2012

प्यार हो गया

रिश्ता चैन से टूटे
निंदिया नयन से छूटे
तो समझो प्यार हो गया

जो रहे तू खोया खोया
जग लगे तुझे सोया सोया
बंधन बांध न पाए
बांध सब्र का टूटे
तो समझो प्यार हो गया

सह सके न पल की जुदाई
बस देती ही रहे दिखाई
पलक तू पल भी न झपके
लगे कोई लेगा लूट
तो समझो प्यार हो गया

झूठ से दोस्ती हो जाये
अपनों से आँख चुराए
हर बात पर धडके दिल
कहीं ये न जाए टूट
तो समझो प्यार हो गया


रिश्ता चैन से टूटे
निंदिया नयन से छूटे
तो समझो प्यार हो गया







  

रविवार, 25 मार्च 2012

मै कौन?

पूछूँ मै तो गली गली
मै कौन?
बता कर करदो भली

कोई कहे मै पुत्र और भाई
ये सब तो तुमने भी पाई
सवाल एक मै कौन हूँ सारा
कुछ ने कहा और नाम से पुकारा
नाम के जैसे बहुत रह रहे
मै कौन तुम क्यूँ न कह रहे

मानव ने मानव बतलाया
रिश्तों का जलवा दिखलाया
पदवी से भी मुझे पुकारा
वंश जाती का लिया सहारा

मै कौन प्रश्न से परेशान
है कोई जो बता सके ये जहान
     

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

नयी सुबह

छंट गये बादल उड़ गयी धूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
इस नई किरण के संग तू चल 
कर सपनों को सच्चा हर पल

जब सब कुछ था सब अपने थे
छिनते देखा छितरे वो अपने थे
एकांकी का एहसास हुआ तब
रिश्तों का एक पास हुआ तब

देख तेरे एक द्रढ़ निश्चय ने
तुझको फिर वहीं खड़ा किया
देर न कर न याद कर शूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल




बुधवार, 21 मार्च 2012

कर्राहट करता जीवन

कर्कश कर्राहट करता जीवन यूँ निकला जाता है
क्या पाया जन्म गंवाया नजर कुछ नही आता है

पथरीले पथ रिस्ते रिश्ते घाव बढ़ाते संग साथ चले
पग पग कोशिश करते मंजिल मुझसे दूर दूर चले

एकाग्र न खो व्याग्र न हो बस पथ पर अपने चला चल
छदम भेष में पग पग पर तुझे भटकायेंगे छलावे छल

देख तनिक उस सैनिक को जो छोड़ सब जीता जाता है  
टिमटिमाती लौ जलाती बाती पगडंडी को चमकती है 

तू तेरी मंजिल पाने में अपना सयम क्यूँ खोता जाता है 
कर्कश कर्राहट भरे जीवन में मंजिल की ओर आता है

मंगलवार, 20 मार्च 2012

नारी

श्रद्धा मान पूजी नारी
तुल्य देवी सी सारी
सौन्दर्य  की अद्भुता
ममता माँ में उभारी

आज बिखर से गये  
नारी समस्त वो रूप
नारी को न भाए नारी   

गुण गये कहाँ सूख

नारी नारी का कर रही
शोषण पल प्रति पल
चित्रपट पर देख सदा
दुश्चरित्र कपट व् छल

कंधे से कन्धा मिला
चली छमक संग संग
परनारी संग बोलते
पुरुष को कहे वो नंग

परपुरुष नारी मिले
माने सब संग साथ
बूझो तो झट से कहे
कन्धा कंधे के साथ

हर क्षण नारी पर करे
नारी ही घातक वार
पुरुष काहे सब सहे
विधि की लिखी मार

नारी को नारी दिखे
शारीरिक भूख की मारी
पुरुष छुपा रिश्तों से फिरे
कब कहलाये व्यभिचारी

अब तो नारी सुध लेले
वरना तेरी भी आये बारी
बदन के रिश्ते से बड़े
निभा रही और भी ये नारी

तू क्यूँ कोसती अब जाती
पुरुष संग हो परनारी
पता नही हो पूज्य रुप मे
पर तेरे कारण थू सारी जाति            

सोमवार, 19 मार्च 2012

दूरियां

सूरज दूर बैठा देखे भूखा रहे न कोई
अंधकार जो कहीं दिखे चमकाए वोई

सागर देख चंदा दौड़े पकड़ने को किरन
दुरी न कम प्रेम अजब भड़काए अगन

दूरियां न करती कभी प्रेम में कोताही
नयनन दूर होते तजे प्रेम जाने नाही

प्रेम न माँगा जाए कभी अपने आप ही आये
उपजाए न उपजे कभी उपजे कभी न जाए

  

रविवार, 18 मार्च 2012

अंतिम ठौर

जर्जर पिंजरा हो गया छुटा न पंछी मोह
कैदी समझे नासमझ उड़ने से भय होए

कैसी नादानी लिए चमकाए जिसमे रहे
उड़ान उसकी मंजिल भूल कैद में सोये

जाग अब डैने फैला देख गगन की और
तेरी मंजिल जोह रही तेरी अंतिम ठौर