सोमवार, 29 अगस्त 2011

मोक्ष

जीवन ने चाहा मोक्ष हो 
पर अभी कर्म कुछ बाकि थे 
मोह माया से मुक्त हम हो
पर प्रेम धर्म कुछ बाकि थे

एक छाया प्रेम की दिखी 
हम छाया के हो लिए 
छाया हमे छाया ही मिली 
हम आँख खुली सो लिए

अब जीतने की जीत में 
जो जीता हमने खो लिए
प्रेमधर्म सोचा था बाकि
जो था वो भी संग खो लिए 

मोक्ष की चाह बस चाह थी 
प्रेमधर्म की लुप्त राह थी 
जीता जो अपने दिल को 
पाया वो मोक्ष की राह थी

शनिवार, 27 अगस्त 2011

कहाँ से और रौशनी लाऊं मै

सूरज की चमक है चहुँ ओर
दिखती है दूर कुछ अपनी ठौर 
पर ठोकर खाते हैं ये कदम
कहाँ से और रौशनी लाऊं मै 

चलने से पहले था देखा भाला
बढ़ें जो कदम बिन रोड़ा छाला
अब जब डगमग से हो चलें 
कैसे कदमताल मिलाऊं मै 
कहाँ से और रौशनी लाऊं मै

नन्हे नन्हे थे जब अपने पग
चिंतामुक्त उड़ाते थे धूल तब 
अग्रज बताते उठाते चलाते सब 
वो अग्रज अब कहाँ पर पाऊं मै 
कहाँ से और रौशनी लाऊं मै

स्वयं ही मंजिल स्वयं ही कदम 
स्वयं का सपना स्वयं पायें हम 
छाप कदम की उन सब के लिए 
जो दिखाएँ राह कैसे उठाऊं मै
कहाँ से और रौशनी लाऊं मै

बुधवार, 24 अगस्त 2011

चमकेगा तेरा नाम रे

पंक्ति लम्बी, भीड़ बड़ी है
तुमसे पाने को वरदान रे
मै भी कुछ मांगना चाहता
मुझको समझ न ज्ञान रे
कोई कहता धन तू मांग
कोई वैभव का वरदान रे
मेरी बुद्धि काम न करती
हो गई बिलकुल जाम रे
मेरा नंबर जब आगे बढ़ता
मेरे घटते जाते प्राण रे
नंबर आया क्या मांगूंगा
गले में अटकी जान रे
एक आया मुझको समझाने
तू मांग अभय वरदान रे
सोचा जीना है अभिशाप
क्या करूंगा रखकर प्राण रे
तभी मेरा एक वंशज आया
बोला बन जाओ धनवान रे
धन रखना मुश्किल जग में
कैसे उसका रखूँगा ध्यान रे
अमीरी का झोंका भी आया
मांग तू रहना आलिशान रे
मेरा आधा अंग भी आया
बोला क्यूँकर भौतिक मांग रे
माँगना है तो तुम मांगो
रहे सदा प्रभु का ध्यान रे
जाना आना लगा रहेगा
ना जाए तुम्हारा नाम रे
ज्यूँ ही मेरा नंबर आया
कुछ न सुझा ज्ञान रे
बस मै झुकता चला गया
प्रभु दर्शन ही वरदान रे
बोले तू चतुर है प्राणी
जा कर अच्छे काम रे
चाहे जग में कुछ न चमके
चमकेगा तेरा नाम रे
चमकेगा तेरा नाम रे

शनिवार, 20 अगस्त 2011

यौवन तान

गदराया सा ये बदन
झील से गहरे नयन
सुंदर सुडोल यौवन 
डोलता डोले युवामन
खींचता मुझे हर क्षण
तोड़ने को सारे वचन

फूल की पंखुरी से होठ
गेसुओं सी नागिन चोट 
चाँद से चेहरे की वो ओट
तपती  साँसों की वो लोट
सुनाएँ मुझे एक ही तान 
आज तोड़ दे सारे वचन 

शनिवार, 13 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस

बो कटा का स्वर रह रह कर कानो मे पड़ता
बच्चे बड़े उत्साहित होते जब पेच कोई लड़ता
छते पटी पड़ी थी लगता कोई सैलाब उमड़ रहा
आँखे सबकी गगन देखे धरती ने ना कुछ कहा
छत के नीचे न कोई दिखे उपर सारा देश खड़ा
कोई सोचो एक बार क्या बिन छत है कोई पड़ा
रंगो का सैलाब गगन मे, पतंग थी रंग बिरंगी,
चिड़ा, डंडा, परी, दुरंगी, कंदील बांधे थी तिरंगी 
एक छत दो भाई उड़ा कर अपने को था काटता 
अजब किस्म का त्यौहार ये काटता ओर बांटता
बिन छत त्यौहार मनाता, छत देख ठोकरें खाता 
सूखे झाड़ चहुँ ओर घूमा वो गरीब पतंगे था पाता
कोई काटे कोई बांटे, कोई रंग बिरंगी दुनिया छांटे
१५ अगस्त कैसे भुलाए एक रात पहले घर जो बांटे
माँ, मौसी अलग हो गई, मिलना चाहे भाई भाई
आओ हम उसको ढूंढे, जो बढाता बीच की खाई
१४ हो या १५ या एक करती नयी तिथि कोई आए
एक हो जननी तब ही हम स्वतंत्रता दिवस मनाए      

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

जानो हम कहते हैं

आंधी चली धूल उठी
धरती धुलम धूल पटी
खड़े खड़े आँखे मलते हो 
चले चलो मंजिल पहुँचो  
तो जानो, मंजिल पाना इसे कहते हैं

प्रेम प्रेम सब कहते है
प्रेम की चाह में रहते हैं
नफरत की दुनिया में
पहल प्रेम की करके देखो
तो जानो, प्रेम प्रेम इसे कहते हैं

दोष दूजे में सब गिनते हैं
सीख देने को धर्म कहते हैं
आइना देख जो तुम झेंपो
उतार अपने अवगुण फेंको
तो जानो, सच्ची सीख इसे कहते हैं

अपना अपना क्यूँ कहते हो
जब एक परिवार में रहते हो
लाओ बाँटो सब रिश्तों में
चाहे ना पाओ तुम अंत में
तो जानो, परिवार इसे कहते हैं

अपना धर्म सच्चा कहते हैं
दूजे  धर्म को ना सह्तें  हैं
दूसरों के दुःख समझ तुम अपने
सारे सुख बाँट दुःख जो भगाओ
तो जानो, सच्चा धर्म इसे कहते हैं