जो चाहा था वो पाया था
मेरे सर माँ का साया था
मै जब किसी शुभ कार्य हेतु
घर से जाता था
माँ का हाथ बिन भूले दही
शक्कर खिलाता था
आज मेरी गलतिओं पर कोई, डाँटने
वाला नहीं है
पर गलती नहीं करता क्योंकी माँ
अब भी यहीं है
जब भी नाकामी का अहसास होता
है
माँ के आँचल का सर पर आभास होता
है
भगवान् क्षमा मांगता हूँ
आज भी तेरा दिया जला नही
पाया
माँ को तो तूने बुला लिया
पर मै उसे अब भी भुला नही
पाया
1 टिप्पणी:
माँ को समर्पित अत्यंत सरल भाव उतने ही गहरे भी | राजीव जी-- माँ की महिमा लिखने मेंकोई कलम समर्थ नहीं पर बहुत अच्छा लिखा आपने | सस्नेह शुभकामनायें |
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