गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

कातिल न समझो

जिनके लिए हमने छोड़ी थी दुनिया
दुनिया से ही हमको  आज मिटा बैठे
लुट तो चुके थे हम, कुछ भी न बचा था
पर ढूंढ़ कर बचा वो फिर भी चुरा बैठे   

उनका तो वादा था, जन्मो जन्म तक का
अगला न देखा पर, वो आज का मिटा बैठे
हम मिट गये तो क्या, हाथों से उन्ही के
आखिरी सांस जो निकली गोदी में जा बैठे

कातिल न समझो उनको नन्हा सा दिल हैं वो
सादगी ये उन्ही की थी, जान हम लुटा बैठे

ये न समझना लोगो गैर हो गएँ हैं अब वो
कत्ल जो किया उन्होंने, पूरा दिल लगा बैठे
मौत तो आनी है , बचेगा न कोई उससे
एक नजर तो देखो हम जन्नत में जा बैठे

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यही जान लुटाना तो बहुतों को अखरता है..

Anamikaghatak ने कहा…

ati uttam prastuti

sangita ने कहा…

utkrishtha post .bdhai mere blog ki nai post par svagat hae.

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

मेगा सुन्दर रचना :)

अरुन अनन्त ने कहा…

सुन्दर रचना
अरुन (arunsblog.in)